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Wednesday, July 15, 2009

काश

काश वो दिन मुझे मिल जाएँ फ़िर से
वो उजले पल वो मीत मेरे मिल जाएँ फ़िर से
एक नीड़ बनाने की चाहत है..... चुन कर मुट्ठी भर तिनकों से
वो तिनके आशा से जगमग ..... स्वर्णिम मुझ को मिल जाएँ फ़िर से

एक नीड़ सजा लूँ आज कहीं एक छोटी सी दुनिया चुन कर
एक नीड़ सजा लूँ आज तेरे आने के कुछ सपने बुन कर
एक पर्ण कुटी नीरव वन में या नाव एक नदिया तट पर
या अम्बर के नीचे फैले उस घास के हरे भरे पट पर
एइ काश कहीं वो नीड़ मुझे मिल जाए फ़िर से .....

एक लम्हा मिल जाए चुपके से ....... चोरी से समय की गागर से
जो छलक के निकला अनायास और बंद हो मेरी मुट्ठी में
एक नीड़ बना लूँ लम्हे का जिसमे बस तू हो और हूँ मैं
चुप्पी की तान बना कर फ़िर सपनो के बोल सजा लूँ मैं
ओह काश वो राग वो धुन मुझ को मिल जाए फ़िर से ............

बादल का छोर पकड़ कर क्यो ना आज खींचूँ अम्बर से
कोहरे की ओट बना कर तुझ को आज छिपा लूँ जग भर से
बैठे गुप चुप गुमसुम से तुम हम एक दूजे की बाहों में
अब दिल बोले तेरे दिल से .... सब बातें अपनी जी भर के
काश वो गुज़रा एक ज़माना आज मुझे मिल जाए फ़िर से ....

आज फ़िर दिल ने एक ख्वाहिश की है
तुझसे मिलने की गुजारिश की है
आज फ़िर सन्नाटों में पुकारा है
अपने ख़्वाबों की नुमाइश की है
दिल ने फ़िर नीड़ अपना माँगा है
जिसके साए में सब कुछ बेहतर था
दिल ने फ़िर आज सिहर कर एक तमन्ना की है

एक मुट्ठी में सुनहरे तिनकों की
दिल ने फ़िर आज मुद्दत बाद एक सदा दी है
सोये हुए से आलम में शायद दुआ दी है
एक छूटती राह पर फ़िर सोचा है
तेरी चौखट पर ये दिल भेंट फ़िर अदा की है
काश वो दिन, तिनके लम्हे मुझ को मिल जाएँ फ़िर से
तुम्हारे संग गुज़रे पल मुझ को मिल जाएँ फ़िर से









9 comments:

अमिताभ श्रीवास्तव said...

'काश' सचमुच सुहाना होता है. कम से कम हम कुछ अपना सा सोच तो लेते है.
अच्छी रचना है आपकी. साधुवाद

mehek said...

एक लम्हा मिल जाए चुपके से ....... चोरी से समय की गागर से
जो छलक के निकला अनायास और बंद हो मेरी मुट्ठी में
एक नीड़ बना लूँ लम्हे का जिसमे बस तू हो और हूँ मैं
behad khubsurat bhav,lajawab tarif ke liye laz kum hai.

अरविन्द श्रीवास्तव said...
This comment has been removed by the author.
अरविन्द श्रीवास्तव said...

आज फ़िर सन्नाटों में पुकारा है.एक मुट्ठी सुनहरे तिनकों की काश वो दिन, तिनके लम्हे मुझे मिल जाएँ फ़िर से ...तुम्हारे संग गुज़रे पल मुझे मिल जाएँ फ़िर से
.. बधाई और शुभकामनाएं.

अनिल कान्त said...

ये दिल भी कमबख्त बहुत प्यारी प्यारी तमन्नाएं करता है

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

M VERMA said...

गुज़रा ज़माना आज मुझे मिल जाए फ़िर से ....
===
बहुत अच्छी ख्वाहिश है -- शायद हर दिल की ख्वाहिश है --- पर ---
अच्छी रचना

विवेक रस्तोगी said...

हर आदमी चाहता है कि उसके गुजरे हुए सुन्दर पल वापिस आ जायें या फ़िर हमेशा उसकी स्मृति में रहें।
बहुत सुन्दर रचना।

सुशील छौक्कर said...

सुन्दर शब्दों से रचा गया काश। बहुत उम्दा।

डॉ .अनुराग said...

ये "काश" मुआ खामखाँ कई उम्मीदों की लालटेन दरवाजे पे टांग देता है.....देखिये न...हमने भी टांग रखी है कई रोज से