दिन बीत गए जाने कितने जाने कित पल छिन बीत गए
अब दरस को तरसे मेरे नैन, सुनना चाहे मन बोल नए
स्मृति पट पर अंकित छवि है तेरी, विरह की पीर चुराती है
पर अनायास, यूँ ही अक्सर कुछ प्रश्न नए दे जाती है .....
क्या अब भी बाल की नटखट लट घुन्घ रा कर माथा छूती है?
भौहें क्या अब भी नाच नाच कर मन की बातें कहती हैं?
क्या अब भी आँखों में तेरी वो चंचलता है गर्मी है?
क्या हँसी में तेरी अब भी एक आह्लादित शिशु की नरमी है ?
हाथों को थाम के जान ने दो क्या आज भी उतने सक्षम हैं?
क्या आज भी तेरी धड़कन में सच्चाई का वो सरगम है?
क्या कभी कभी विरले ही सही मेरी याद तो तू भी करता है ?
जिस तरह मेरा मन हर लम्हे में तुझ को ढूँढा करता है?
स्मृति भी क्रूर विधाता सम निष्पक्ष खडी इतराती है
ऐसे असहाय पलों में प्रियतम तेरी याद सताती है
स्मृति पट पर अंकित छवि तेरी इस जीवन की थाती है..
7 comments:
स्मृति पट पर अंकित छवि तेरी मेरे जीवन् की थाती है..
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बहुत अच्छी रचना. पर बीच बीच मे शब्दो का रोमन मे होना प्रवाह को बाधित कर रहा है. कृपया सम्पादित कर इसे ठीक कर ले.
बहुत भावपूर्ण रचना. बधाई.
अच्छी रचना..वर्माजी की सलाह पर ध्यान दें..!!
अच्छे भाव ।
लिखती रहो. पूर्णता कही आस-पास ही है.
साधुवाद
nice poem with thoughtful approach.
http://www.ashokvichar.blogspot.com
Corrections taken :)
thanks for your genuine interest.. all of you
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