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Monday, July 6, 2009

तेरा अक्स

सपनो की नर्म परछाइयां आज फ़िर तेरा अक्स ले आई हैं 
आंखों से नींद गई नही है अभी ...... इसलिए अब भी दिख जाता है
तेरा अक्स .... जो कहीं दूर से मुस्का रहा है ... पहले की तरह 
तेरा अक्स .... जो अब भी भरमा रहा है .... पहले की तरह 

 करवटें भी अजीब होती हैं .... करवटों के साथ सपने नही बदलते हैं 
वो सपने जो बिन कहे गुम जाते हैं ... करवटों की गोद में अक्सर छिपे से मिलते हैं 
हर करवट के साथ भी मुझको नज़र आ रहा है .... पहले की तरह 
तेरा अक्स ... जो दूर से लुभा रहा है ..... पहले की तरह 

हवा के झोंके तेरे आने का पैगाम दे गए थे 
तेरी आहट की एक पहचान दे गए थे ... 
तेरे कदमो की आहट और तेरे मन की आहट 
तेरी साँसों की दिल की और उस धड़कन की आहट 
उफ़ तेरे अक्स का गहरा असर इस दिल पर है 
मेरे सिवा तेरे इस अक्स से सब बेखबर हैं 

आज दिल ने कहा, बस थाम ले आगे बढ़ कर 
आज तू ख़ुद है ख़ुद तू है यहाँ , तेरा अक्स नही 
मगर ये मन भी अब मुझसे झूठ कहा करता है ....... 
Haath aayi bhi to dhool teri yaad ki 

तू अब भी दूर है बस अक्स तेरा पास है 
तेरे इस अक्स के सच की मुझे तलाश है 
तू मुझसे दूर नही मेरे वजूद में शामिल है 
तुझसे जुड़ कर मेरा जीना भी अब मुकम्मिल है 

आंखों को बंद कर के फ़िर से दिल ने करवट ली 
अब तेरे खो जाने का तनिक भी डर नही 
मेरा मन खुशनुमा सपने नए सजाता है 
तेरे उस अक्स के ..... जो रोज़ मन भरमाता है ..........

4 comments:

M VERMA said...

करवटों के साथ सपने नही बदलते हैं
===
बहुत खूबसूरत रचना

अजय कुमार झा said...

हैरत में हूँ की अब तक आपको कैसे नहीं पढा कभी..बहुत ही प्रभावी लेखन .फौलो बटन भी नहीं है ...जो फौलो कर सकूँ..चलिए आइसे ही आकर पढूंगा ...

Udan Tashtari said...

बेहतरीन रचना!

Unknown said...

umda !