Followers

Friday, January 29, 2010

रात

नीला गगन फिर झुक रहा है
टिमटिमाते तारों के बोझ से
धरती कि साँसें सन चुकी हैं
सर्द हो चुकी ओस से

आज चुप सी है चंचल चांदनी भी
झींगुर भी आज कुछ कुछ अनमने हैं ...
पत्ते भी आज जाने क्यों तनिक उनींदे हैं
फुनगी पे टिक कर सो गयी चंचल हवा भी ..

समय ने आज शायद नैन अपने मूंदे हैं
मूक है आज प्रकृति रागिनी भी ....
चंदा भी मौन है .. छिपा हुआ.. दिखता नहीं...
मूक है आज चितवन भामिनी की ...

रात सयानी काली स्याही बन के आई है
अम्बर कि दरारों से रिस रही है ज़मीं पर
यामिनी खुद भी तो रूठी हुई सी आई है
अनमनी है वो भी चंदा कि कमी पर

आज कोसा है सब कुछ.. ऊबा हुआ सा
रात का दोष नहीं , दोष है मन चंचल का
आज फिर बेवजह के सपनों में डूबा हुआ सा
चाहत कि झोली से सपने चुराना चाहता है...
पर गगन जानता है एक एक सपने की कीमत
ये तारे और क्या हैं? कुछ नहीं.. सपने अधूरे हैं
इन्ही के बोझ से अम्बर थकित है .. झुक गया है
बूढ़े अम्बर से दिल सपने चुराना चाहता है..




9 comments:

36solutions said...

बहुत सुन्‍दर, शव्‍दों और भावों से परिपूर्ण कविता. धन्‍यवाद.

Mithilesh dubey said...

लाजवाब लगा पढ़ना आपको ।

Yashwant Mehta "Yash" said...

kya baat hei......kya baat hei....bahut badhiya bhaav.......

Udan Tashtari said...

पर गगन जानता है एक एक सपने की कीमत
ये तारे और क्या हैं? कुछ नहीं.. सपने अधूरे हैं
इन्ही के बोझ से अम्बर थकित है .. झुक गया है
बूढ़े अम्बर से दिल सपने चुराना चाहता है..


-शानदार!!

M VERMA said...

नीला गगन फिर झुक रहा है

टिमटिमाते तारों के बोझ से

ऐ गगन तुझे तारे ही बोझ लगने लगे
ये तुम्हारा ही तो दामन थाम चलते हैं

निर्मला कपिला said...

रात का दोष नहीं , दोष है मन चंचल का
आज फिर बेवजह के सपनों में डूबा हुआ सा
चाहत कि झोली से सपने चुराना चाहता है...
पर गगन जानता है एक एक सपने की कीमत
ये तारे और क्या हैं? कुछ नहीं.. सपने अधूरे हैं
इन्ही के बोझ से अम्बर थकित है .. झुक गया है
बूढ़े अम्बर से दिल सपने चुराना चाहता है..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है। बधाई

Arshad Ali said...

सुन्दर भाव ...
अच्छी कविता

Padm Singh said...

नीला गगन फिर झुक रहा है
टिमटिमाते तारों के बोझ से
धरती कि साँसें सन चुकी हैं
सर्द हो चुकी ओस से

आज चुप सी है चंचल चांदनी भी
झींगुर भी आज कुछ कुछ अनमने हैं ...
पत्ते भी आज जाने क्यों तनिक उनींदे हैं
फुनगी पे टिक कर सो गयी चंचल हवा भी ..

बहुत सुन्दर लिखती हैं आप ... शब्दों का चयन और भाव की सुंदरता देखते बनती है .. बधाई

संजय पाराशर said...

ह्रदय स्पर्शी रचना.....