दिल ने फ़िर दूर कहीं आज वो अपना देखा
धुंधला था सब कुछ पराया था जहाँ
मेरा कुछ भी नही कुछ और ही पाया था वहाँ
अकेले रास्ते गलियाँ गुम से गुमसुम मुकाम
कोहरे की बाहों मे लिपटे हुए किस्से तमाम
अँधेरी स्याह थी दुनिया -- खामोशी बसी थी
क्यों ऐसे मोड़ पर सपनो की दुनिया आ रुकी थी?
मुड़ के देखा-- मुझे यादें मिली कुछ-- भूल से
पुरानी जर्जराती और सनी सी धूल से
कई सपने मिले जो हर तरह गुमनाम थे
बड़े छोटे अधूरे से कुछ ख़ास और आम से
चाँदनी भी अलग थी हर तरफ़ छनती रही
कहीं मकडी के जालों मे फंसी कसती रही
दिल मे थी एक खुशी कुछ भूला सा मिल जाने की
और थी एक चुभन जो सब खोया -- याद आने की
दिल था बोझिल -- अचानक राह आगे खुल गयी
सपनो की दुनिया मे मंजिल नयी फ़िर मिल गयी
इन्ही यादों से मे- मे हूँ नही कोई और है
उड़ान बाकी है मेरी -- अभी आसमा कई और हैं
ख्वाब के रास्ते मैंने रुक के ख़ुद को फ़िर देखा
अपनी आंखों से अपनी रूह का आईना देखा
आज फ़िर मैंने खुली आँख से सपना देखा
दिल ने फ़िर दूर कहीं आज वो अपना देखा
5 comments:
ख्वाब के रास्ते मैंने रुक के ख़ुद को फ़िर देखा
अपनी आंखों से अपनी रूह का आईना देखा
-बढ़िया भाव!! सुन्दर अभिव्यक्ति!!
ख्वाब के रास्ते मैंने रुक के ख़ुद को फ़िर देखा
अपनी आंखों से अपनी रूह का आईना देखा
बहुत अच्छे भाव की पंक्तियाँ परिधि जी। वाह।
सपनों में भी अपना देखा बहुत बड़ी ये बात।
खुली आँख में सपना आये बेहतर है सौगात।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
ok, thanks
spno ki mn me koi tsvir bnai hogi
duniya ki tsvire us se khoob milai hongi
pr kitna mushkil hota haai us moort ka milna
jis ne spno me aa kr ke nid udai hogi
dr.vedvyathit@gmail.com
http://sahityasrajakved.blogspot.com
paradhi, sapno ke shabd koob sajaye hai aapne..par khuli aakho se sapna mat dekhiye.. sapne ko sapne hi rahne dijiye...sapne kabhi nahi hote apne...
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