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Monday, January 11, 2010

गुज़ारिश

एक बात कहूँ सुनते हो ना ?
बस यूँ ही तुम दिल में रहना

मैं द्वार हृदय के खोलूंगी
पर मुख से कुछ ना बोलूंगी
तुम स्वयं समझना भाव मेरे
मुझको अपने दिल में रखना

जब राह कठिन हो जीवन की
मुझको अपने संग पाओगे
हर कदम पे फूल बिछाऊंगी
तुम जब जब कदम उठाओगे

बस नहीं भूलना तुम मुझको
जीवन की अनगिनत राहों पे
चलते चलते यूँ ही मुड कर
मुस्का के मुझे जिला देना

तुम मेरे सपनो में रह कर
मुझको जीवंत से प्यारे हो
तुम अमृत जैसे शीतल हो
मेरे प्रेम के तुम अंगारे हो

तुम हँसो तो मै भी हँसती हूँ
बस जीवन भर हँसते रहना
अपने हाथो में ले कर मेरा
हाथ संग चलते रहना

एक बात कहूँ सुनते हो ना?
बस यूँ ही तुम दिल में रहना....

8 comments:

Udan Tashtari said...

सुन्दर रचना!

Arvind Kumar Mishra said...

बहुत ही अच्छी कविता है मन को छू गयी आप ऐसे हे लिखते रहे |

vatsapriyas said...

lovely!!

Vikas Kumar Jha said...

bahut neek

ss said...

Khubsurat panktiyaan.

Paridhi Jha said...

धन्यवाद सभी को .... आपके विचार लिखने को प्रोत्साहित करते हैं... शुक्रिया

Pramod kumar jha said...

nicely penned, bt dont take it on heart...varna pachtana parega

santosh Sharma said...

Really Great ...