बस यूँ ही तुम दिल में रहना
मैं द्वार हृदय के खोलूंगी
पर मुख से कुछ ना बोलूंगी
तुम स्वयं समझना भाव मेरे
मुझको अपने दिल में रखना
जब राह कठिन हो जीवन की
मुझको अपने संग पाओगे
हर कदम पे फूल बिछाऊंगी
तुम जब जब कदम उठाओगे
बस नहीं भूलना तुम मुझको
जीवन की अनगिनत राहों पे
चलते चलते यूँ ही मुड कर
मुस्का के मुझे जिला देना
तुम मेरे सपनो में रह कर
मुझको जीवंत से प्यारे हो
तुम अमृत जैसे शीतल हो
मेरे प्रेम के तुम अंगारे हो
तुम हँसो तो मै भी हँसती हूँ
बस जीवन भर हँसते रहना
अपने हाथो में ले कर मेरा
हाथ संग चलते रहना
एक बात कहूँ सुनते हो ना?
बस यूँ ही तुम दिल में रहना....
8 comments:
सुन्दर रचना!
बहुत ही अच्छी कविता है मन को छू गयी आप ऐसे हे लिखते रहे |
lovely!!
bahut neek
Khubsurat panktiyaan.
धन्यवाद सभी को .... आपके विचार लिखने को प्रोत्साहित करते हैं... शुक्रिया
nicely penned, bt dont take it on heart...varna pachtana parega
Really Great ...
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