आज सब नया सा है , हर लम्हा हर धड़कन
हर पत्ता हर तिनका, आज सब मी कोई बात है
या बदल गया है कुछ मुझ मे?
हाँ ... मुझमे ..... आज मैं खुश हूँ
आज मैं दुनिया बदल दूँगी ...
आज दिल मे एक ललक सी है ..... आज मैं कुछ भी कर सकती हूँ ....
आज बादलों की सीढ़ी बुन कर .... मैं फलक के रास्ते आसमान तक पहुँच सकती हूँ .....
आज मैं इस दम्भी आकाश का सर झुका दूँगी ...
आज मेरी हथेलियों मे वो दम है .... कि सूरज का दमकता चेहरा थाम सकती हूँ .....
अगर उस ने तमक के मुह फेरा ..... तो उसे गुदगुदा कर मना सकती हूँ .....
आज मैं नटखट सूरज को छिपने ना दूँगी ....
आज मैं आशा की सफेदी मे उंगली डुबा कर ... रात के श्याम पट पे तारे बना सकती हूँ ...
आज मन कर ही ले तो मैं साँसों मे सागर भर... सारी रात गुन गुना सकती हूँ...
आज मैं रात के तारो की छाँव मे सागर को उफना के रहूंगी
आज मुझ मे कुछ नया सा है.... आज मैं कुछ बदली सी हूँ .....
थोडी चुप सी थोडी नटखट ...... यूं ही बस चूल बुली सी हूँ .....
जानती हूँ की ये खुशी मेरी बस कुछ पल ही सही
पर इस लम्हे मे ये बस मेरी है ......
आज मैं इस पल मे ऐसे कई नए पल बना के रहूंगी .....
3 comments:
धनात्मक उर्जा से भरी लगी आपकी कविता.... ये मूड बनाए रखें।
thoughts may be driven by the Fanaticismtic approach of the poetess. but the ardor and zeal for life sounded very real n true.
excellent !!!!
Very nice poem.
The way you have humanized the nature is extremely adorable.
Would I say, Thank You for writing.
Post a Comment