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Wednesday, July 25, 2007

दिव्य दृष्टि

आंखों को कम मत आन्किये आंखें खदान है सपनो की
गहराईयां इन की थामे है खामोशियाँ ग़ैर अपनों की
छुपा है इन के गह्वर मे हरेक भाव इस दिल का
इन ही के झुकने उठने से बंधा है अर्थ हर वचन का

ख़ुशी इन मे झलकती है जो कोई ख्वाब सच होता है
कसक के बादल छाते है जो कोई दर्द ग़र होता है
कभी ये दम बढाती है अपनी खामोश ताक़त से
कभी हम को मिलाती है हमारी खुद की कूवत से

कहा करती है रिश्तों की कही अनकही कहानी
कभी कई राज़ खुलते है इन आंखों कि ज़ुबानी
बड़ा जादू है आंखों मे जो हर एक दिल पे चलता है
ये आंखें आईना है उसका जो ख्वाब दिल मे पलता है

इनकी पलकों के साए मे कई आशाये पलटी है
तृप्ति इन मे झलकती है जब कडी मेहनत पलती है
हैताक्रार होती है इन्ही आंखों ही आंखों मे
कभी झरने बरसते है प्रेम जल के इन आंखों सए

आंखें जीवन समेटे है इन्हें बेजान मत समझो
आसरा नही मांगती ये आस देती है तन मन को
इन मे जो चंचलता है वो ना कभी ख़त्म होने दो
ये चपल ही रहे यू सदा दिव्य दृष्टि मत खोने दो