कच्ची धूप गुनगुनी धूप
भोली सी अनमनी धूप
अम्बर से छन-छन के गिरती
करवटें सी बदलती धूप
पत्तों के तन से टकराती
हवा के झोंकों मे बलखाती
फूलों की पंखुदी चूम कर
गुलशन नए खिलाती धूप
कभी मेरे आँचल से छन कर
पलकों की चिलमन के नीचे
कभी नाच कर कभी उफ़न कर
सपने नए दिखाती धूप
नए समय का आवाहन बन
सुबह नयी फिर लाने वाली
टूटे थकित पथिक के रस्ते
सोना बन मिल जाने वाली
ऎसी अलबेली मस्तानी
धुली- धुली अधखिली धूप
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