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Sunday, November 13, 2011

प्रिय भालू,

कैसे हो? और कहाँ हो? सच कहती हूँ, मैंने तुम्हे जान बूझ कर नहीं खोया, बस यूं ही अनजाने में जाने कैसे तुम छूट गए, जाने कहाँ..

तुम वैसे हमेशा साथ ही रहे.. हर समय... याद है कैसे मेरी सहेलियां हंसी उडाती थी? बहुतो ने तो तुम्हे मेरा प्रियतम भी घोषित कर दिया.. और मुझे चिढाने के लिए हमेशा तुम्हे सताती थी.. उनकी भी क्या गलती, तुम थे ही इतने प्यारे.. याद है न कैसे  मैं तुम्हे बचाती थी बार बार, हर बार.. अब सब पूछा करती हैं, की ओ री, तेरा भालू कहाँ गया? तुम ही कहो, क्या जवाब दूं, कौन मानेगा कि मैंने तुम्हे खो दिया?

जब भी कदम बढाया, तुम हमेशा साथ थे, कितने मुकाम हम ने मिल के पार किये.. कठिन सफ़र भी आसान हो जाता था जब तुम्हे देखती थी.. तुम से घर kee यादें जो जुडी थी.. यादें ही नहीं चाबी भी..

ओ मेरे भालू रुपी चाबी के छल्ले तुम gum क्यों गए.. तुम जानते हो न मैं तुम्हे कितना चाहती हूँ? तुम मेरे प्रियतम नहीं, जैसा सब हंसी मजाक में कहते हैं, लेकिन भालू तुम तो जानते हो न, कि तुम मेरे प्रियतम kee दी hui भेंट हो, कैसे तुम मुझे प्यारे न होगे..


और अब तुम खो गए.. प्यारे भालू.. क्यों हुआ ऐसा? इसलिए कि अब प्रियतम मेरे पास है? या इस लिए कि तुम चेता रहे हो कि वो भी खो जायेगा?


इन प्रश्नों का  जवाब किस से मांगू प्यारे भालू?

- एक पागल..




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