प्रेमामृत की गागर फूटी बहा कटुक क्यों अन्तर हाला ?
संतप्त कष्ट से व्याप्त दुखी मन कहे किसे ये मर्म ये गाथा ?
कुटिल काल ने ग्रास बनाया चुटकी भर सिन्दूर का वादा ....
व्याकुल आँखे नीर बहा कर आख़िर अब निष्प्राण हुई
भुला चुकी हर स्वप्न मिलन का शेष बची न आस कोई
सर्वस्व समर्पित कर के मन ने फ़िर से स्वप्न संजोया था
भूल चुका था वो अतीत में जो कुछ उसने खोया था
फ़िर आज खो दिया लक्ष्यअप्रतिम जाने या अनजाने में
मन लौट के आया फ़िर वापस एक उजडे से चौराहे पे
छिन्न भिन्न घायल मन पंछी टूटे पंख सम्हाले कैसे ?
शून्य भविष्य के काले पट पर कविता नई निकाले कैसे ?
मन म्लान हुआ अब आर्तनाद करता है कौन है सुन ने वाला?क्रूर विधाता भाग्य ने मेरा जीवन क्यो हास्य रचन कर डाला?
6 comments:
गेय कविता अब कहां कोई लिखता है। आपने लिखा इसके लिए बधाई।
Beatuiful writing. It reminds me writing style of some of the Great Indian Poets' great poems of 60s' and 70s'.
Keep Writing.
bahut hi accha likha hai...likhte rahiye........choriye mat likhna
bahut hi achha . Pls. face book par ya ashish.anchinhar@gmail.com par hamin bhee invite karen.
main apko nahi janta lekin pahchanta jaroor hoon.main amitesh ka dost hoon usi ne apke bare main bataya ki aap bahut achha likhti hai.maine apka aartanad pardha aur mujhe laga usne jhoot nahi kaha tha. mujhe apki writing bahut achchi lagi.
thanks
Paridhi Ji Chha gayi aap.. Tah-e dil se sadaa aayi hai aapki.....aap lekhani jaari rakehn..aapke andar ki kaviyatri ko kaafi door jaana hai...Good wishes
Nihar
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