तरंगें गहरे पानी में उठती है उफन कर कभी कभी
फ़िर एक हवा के झोंके में नश्वर लीला मिट जाती है
उजले दिन की रंगत सारी खोती है सागर के तल में
काली सी एक परछाई में यूँ ही गुप चुप मर जाती है
एकांत रात की बाहों में पानी की बूंदों की लहरी
उठती है मन के क्रंदन सी आंसू की याद दिलाती है
गहरे पानी की चादर में लिपटी है रेशम की नरमी
गीली गीली उन् परतो में खामोशी दबी बुलाती है
लहरों के बढ़ते साए भी दिखते है hअजारों आंखों से
चंदा की ज्योत बिखर कर जब आँखें निष्प्राण जलाती है
साँसे लेता है पानी भी देखा करता है आंखों से
चलता है लहरों के ज़रिये बातें करता बूंदों ज़रिये
ये रूप बदलता रहता है लहरों लहरों पे छलता है
चंदा को नचा कर उंगली पर कितनी ही बार निगलता है
पानी के काले दर्पण में दिखती काली हर परछाई
विस्मित करती कौतुक भर के संगीत भरी स्वर शहनाई
पानी की भाषा अनजानी पानी की भाषा सब जाने
पानी की मध्धम लहरी में बनते कितने ही अफ़साने
उच्छ्वास छोड़ कर ये पानी धीमे से स्वर में कहता है
जीवन को क्यो परिभाषा दो? जीवन तरंग में रहता है
2 comments:
main ek kalam ka sipahi hun aur recently main bhi kuch likhne ki soch raha tha ki is community se aapka "jal tarango" per likha kavita padha 3 se 4 bar aur mujhe mera visay mil gaya thanks for...
Good one Paridhi Ji
Keep it up !
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