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Thursday, April 19, 2007

आशा वसंत

विश्वा सुंदरी धरा विभूषित
सुगम सरल पुश्पाभूषण से
कनक रंग मय रक्त वर्ण सम
विविध रंजनाभूषण से

भरा हुआ है मन्द हास्य से
पुलकित हुई हवा का स्वर
कुसुमित हो इस नयी छटा मे
कुंठित मानव मन तरुवर

नयी धूप के छद्म रुप ने
वृक्षों को ललकाया है
कभी झूमती कभी सम्हलती
इन की कुंदन काया है

कोयल की है मधुर कुहुक
और विविध पक्षियों कि बोली
आवाहन सुन कर वसंत ने
फिर अपनी आँखें खोली

फिर वसंत छा गया धरा पर
उसे पुनश्च सजाने को
अपना जीवन फिर बिखेर कर
जीवन नए जगाने को

ये वसंत संकेत बना है
मन के दृढ विश्वास का
मेरे जीवन कि कुंजी का
मन के खिले पलाश का

ये वसंत संकेत बना
भ्रमरों के सुमधुर गुंजन में
मेरा मन भी खिला रहेगा
इस वसंत के प्रांगन में

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