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Wednesday, July 18, 2018

एकाकी

एक स्याह रात बिना चाँद की
ठंडी बयार, निस्तब्ध सन्नाटा ........ और,
कुछ यादें, कुछ सपने
कुछ रंजिशें कुछ शिकवे
समय के दोने में सजे
नमक मिर्च में सने,
आज फिर मेरे हाथ लगे हैं

टटोल के देखती हूँ तो खुशबू सी उठती है..

बारिश से भीग रही मेरे घर की मिट्टी
वो माँ का इत्र, छोटी जादुई बोतल में,
जिन्न की तरह बंद, हमेशा के लिए
ताज़ी सिकी रोटी की महक
नयी किताब से लिपटी वो सोंधी सी गंध
और इनमे घुला वो अपनापन
अनवरत, निरंतर अमर खुशबुएँ
जो कब की उड़ चुकीं
और जा बैठी हैं अनुभव के झाड़ पर
रात की बयार में ये सुनहरी तितलियाँ
हाथ बढ़ने पर भी पकड़ नहीं आतीं
काश...





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